25 [Best] Chanakya Nitiya
1) जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वस्तुओं का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है ।
2) बुद्धिहीन व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कुरूप कन्या से भी विवाह कर लेना चाहिए, परंतु अच्छे रूप वाली नीच कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवाह संबंध समान कुल में ही श्रेष्ठ होता है।
3) लंबे नाखून वाले हिंसक पशुओं,नदियों, बड़े-बड़े सींग वाले पशुओं,शस्त्रधारियों, स्त्रियों और राज परिवारों का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
4) विष से अमृत ( कड़वी दवा से इलाज ) , अशुद्ध स्थान से सोना, नीच कुल वाले से विद्या और दुष्ट स्वभाव वाले कुल की स्त्री को ग्रहण करना अनुचित है।
5) पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का भोजन दो गुना , लज्जा चौगुनी, साहस छः गुणा ( रति इच्छा) और काम आठ गुणा होता है।
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6) झूठ बोलना उतावलापन दिखाना छल कपट मूर्खता ,अत्याधिक लालच , शुद्धता और दयाहीनता, सभी दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते हैं।
7) भोजन करने की तथा उसे अच्छी तरह से पचाने ने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो ,यह सभी बातें किसी तपस्या के फल के समान है कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होती है।
8) जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, स्त्री उसके अनुसार चलने वाली हो अर्थात पतिव्रता हो ,जो अपने पास धन से संतुष्ट रहता हो, उसका स्वर्ग यहीं पर है।
9) पुत्र वेही है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन पोषण करता है । मित्र वही है, जिसमें पूर्ण विश्वास हो स्त्री वही है, जिसमें परिवार में सुख शांति प्राप्त हो।
10) जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यों में अरोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्रों को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए, जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुँह के पास दूध भरा हो।
11) बुरे मित्र और अपने मित्र पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी नाराज होने पर संभवतः आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे राज्यों को प्रकट कर सकता है।
12) मनसे बिचारी गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए।
13) निश्चित रूप से मूर्खता दु:खदायी है और यौवन भी दुख देने वाला है, परंतु कष्टों से भी बड़ा कष्ट, दूसरे के घर पर रहना है। ( जवानी कि उनका करना वह होश खोना दुख का कारण होता है।)
14) बुद्धिमान व चतुर लोगों का कर्तव्य होता है कि वे अपनी संतान को अनेक प्रकार के अच्छे कार्य व्यापार में लगाए( अच्छे संस्कार दें), क्योंकि नीति के जानकार लोग और सदव्यवहार वाले ही कुल में सम्मानित होते हैं ।
15) जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है । ऐसे अनपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हँसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता ।
16) अत्यधिक लाड़-प्यार से पुत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते हैं और ताड़ना से गुणी हो जाते हैं!भाव यही है कि शिष्य और पुत्र को यदि ताड़ना (डाँट-फटकार) का भय रहेगा, तो वे गलत मार्ग पर नहीं जाएँगा!
17) एक श्लोक आधा श्लोक श्लोक का एक्शन उसका आधा अथवा एक अक्षर ही सही या आधा अक्षर प्रतिदिन पढ़ना चाहिए। तात्पर्य हमें रोज थोड़ा ही सही अच्छा साहित्य पड़ना चाहिए।
18) स्त्री का वियोग, अपने लोगों से अनाचार कर्ज़ का बंधन दुष्ट राजा की सेवा दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा ( समाज मैं निंदा) , ये सभी अग्निन होते हुए भी शरीर को जलाकर नष्ट कर देते हैं।
19) नदी के किनारे खड़े वृक्ष ,दूसरे के घर में गई स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं इसमें संशय नहीं करना चाहिए।
20) वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को, और अतिथि उस घर को जहां वे आमंत्रित किए जाते हैं को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है!
21) बुरा आचरण अर्थात दुराचारी के साथ रहने से आप दृष्टि रखने वाले का साथ करने से तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले से मित्रता करने वाला शीघ्र नष्ट हो जाता है।
22) मित्रता बराबर वालों में शोभा पाती है, नौकरी राजा की अच्छी होती है, व्यवहार में व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है।
23) दोष किसके कुल मैं नहीं है? कौन ऐसा है, जिसे दु:ख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ? सुख -दु:ख तो लगे ही रहते हैं, रात और दिन का चक्र चलता रहेगा।
24) मनुष्य का आचरण - व्यवहार उसके खानदान को बताता है , भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेमभाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है ।
25) कन्या का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को विद्या के साथ जोड़ना चाहिये । दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए ।
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