कूलन में केली में कछारन में कुंजन में ,
क्यारिन में कलित कलीन किलकंत है ।
कहैं पदमाकर परागन में पौन में ,
पातन में पिक में पलासन पगंत है ।
द्वार में दिसान में दुनी में देस देसन हूँ में ,
देखौ दीप दीपन में दीपत दिगंत है ।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में ,
बगन में बागन में बगरयो बसंत है ।। 1।।
और भाँति कुंजन में गूँजरत भीरे भौर ,
औंर डौर झौरन पैं बोरन के वै गए ।
कहै पदमाकर सु और भाँति गालियान ,
छलिया छबीले छैल और छ्वै छ्वै गए ।
औंर भाँति बिहग समाज मे आवाज होती ,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए ।
और रस और रीति और राग औंर रंग ,
औंर तन औरे मन औरे बन व्है गए ।। 2 ।।
चंचला चलाकैं चहूँ ओरन तें चाह भरी ,
चरजी गई ती फेरी चरजन लागी री ।
कहै पदमाकर लवंगन कि लोनी लता ,
लरजि गई ती फेरी लरजन लागी री ।
कैसे धरौं धीर वीर त्रिबिधि समीरै तन ,
तरजि गई ती फेरी तरजन लागी री ।
घुमड़ि घुमड़ी घटा धन कि घनेरों अबै ,
गरजि गई तो फेरी गरजन लागी री ।। 3।।
तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै ,
वृन्दावन बीथिन बहार बंसीबट पै ।
कहै पदमाकर अखंड रासमंडल पै ,
मंडित उमंड महा कालिदी के तट पै ।
छिति पर छान पर छाजत छतान छातान पर ,
ललित लतान पर लाड़िली कि लट पै ।
भाई भली छाई यह सरद जुन्हाई जिहि ,
पाई छबि आजु ही कन्हाई के मुकुट पै ।। 4 ।।
- पदमाकर
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