hindi mein kavita -ऋतु का वर्णन - प्रकृति चित्रण



Hindi Mein Kavita

hindi mein kavita - प्रकृति चित्रण


हिन्दी कविता ऋतु का वर्णन


कूलन में केली में कछारन में कुंजन में ,
क्यारिन में कलित कलीन किलकंत है ।
कहैं पदमाकर परागन में पौन में ,
पातन में पिक में पलासन पगंत है ।
द्वार में दिसान में दुनी में देस देसन हूँ में ,
देखौ दीप दीपन में दीपत दिगंत है ।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में  ,
बगन में बागन में बगरयो बसंत है ।। 1।।

और भाँति कुंजन में गूँजरत भीरे भौर ,
औंर डौर झौरन पैं बोरन के वै गए ।
कहै पदमाकर सु और भाँति गालियान ,
छलिया छबीले छैल और छ्वै छ्वै गए ।
औंर भाँति बिहग समाज मे आवाज होती  ,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए ।
और रस और रीति और राग औंर रंग  ,
औंर तन औरे मन औरे बन व्है गए ।। 2 ।।

चंचला चलाकैं चहूँ ओरन तें चाह भरी , 
चरजी गई ती फेरी चरजन लागी री ।  
कहै पदमाकर लवंगन कि लोनी लता , 
लरजि गई ती फेरी लरजन लागी री । 
कैसे धरौं धीर वीर त्रिबिधि समीरै तन , 
तरजि गई ती फेरी तरजन लागी री । 
घुमड़ि घुमड़ी घटा धन कि घनेरों अबै , 
गरजि गई तो फेरी गरजन लागी री ।। 3।। 


तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै , 
वृन्दावन बीथिन बहार बंसीबट पै । 
कहै पदमाकर अखंड रासमंडल पै , 
मंडित उमंड महा कालिदी के तट पै । 
छिति पर छान पर छाजत छतान छातान पर  , 
ललित लतान पर लाड़िली कि लट पै । 
भाई भली छाई यह सरद जुन्हाई जिहि , 
पाई छबि आजु ही कन्हाई के मुकुट पै  ।। 4 ।। 


        - पदमाकर                                                             

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